Aipankari – Art from the Heart of Uttarakhand

ऐपण आर्ट क्या है? | Aipan Art उत्तराखंड की पारंपरिक लोक कला का इतिहास और महत्व 2025

भूमिका (Introduction) ऐपण कला (Aipan Art of Uttarakhand)

ऐपण कला (aipan art) उत्तराखंड की कुमाऊं संस्कृति की एक अत्यंत समृद्ध और आध्यात्मिक लोककला है, जो विशेष रूप से शुभ अवसरों, त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों में भूमि, दीवारों, मंदिरों और आसनों पर बनाई जाती है। इसमें चावल के पिसे घोल (विस्वार), गेरू, हल्दी और रोली का उपयोग होता है।

यह केवल एक पेंटिंग नहीं, बल्कि एक ऐसी परंपरा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी मां से बेटी को हस्तांतरित होती आई है। ऐपण न केवल सजावटी चित्र हैं, बल्कि इन्हें देवताओं का आवाहन और सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत भी माना जाता है।

aipan art

उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान में अगर किसी कला का नाम सबसे पहले लिया जाए, तो वह है ऐपण आर्ट। इस कला में आमतौर पर लाल पृष्ठभूमि (गेरू) पर चावल के घोल (बिश्वर) से सफेद रंग के ज्यामितीय आकृतियाँ, फूल-पत्तियाँ और धार्मिक प्रतीक बनाए जाते हैं। इन डिज़ाइनों का उद्देश्य होता है शुभता, मंगलकामना और देवताओं का स्वागत

उत्तराखंड की हैंडक्राफ्ट आर्ट जैसे ऐपण कला, पूरे भारत में विभिन्न नामों और रूपों में प्रचलित है। बंगाल में इसे अल्पना कहा जाता है, बिहार में अरिचन, आंध्र प्रदेश में भुग्गुल, गुजरात में सातिया, उत्तर प्रदेश में चौक पूरन, राजस्थान में मंडाना और दक्षिण भारत में कोलम के नाम से जाना जाता है। यह दिखाता है कि भारतीय लोककला की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर कितनी समृद्ध और जीवंत है।

आज के समय में ऐपण कला केवल पारंपरिक घरों और धार्मिक आयोजनों तक सीमित नहीं रही, बल्कि मॉडर्न होम डेकोर, फैशन, और डिजिटल डिज़ाइन तक अपनी पहुँच बना चुकी है। इसके पारंपरिक रूप की आध्यात्मिक शक्ति और सांस्कृतिक महत्ता आज भी उतनी ही प्रभावशाली है, जितनी सदियों पहले थी।

ऐपण कला क्या है? What is aipan art

उत्तराखंड की प्रसिद्ध पारंपरिक लोककला “ऐपण” कला (aipan art), जिसे ऐपण या अल्पना भी कहा जाता है, भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र की एक पारंपरिक लोक कला है। कुमाऊँनी घरों में इसका विशेष महत्व है, क्योंकि “ऐपण” शब्द “अर्पण” से लिया गया है, जो आमतौर पर “लिखाई” या लेखन से जुड़ा होता है। यह कला विशेष रूप से कुमाऊं क्षेत्र में प्रचलित है और शुभ कार्यों जैसे पूजा, त्योहार, नामकरण, विवाह, जनेऊ आदि में भूमि, देहरी और मंदिरों को सजाने के लिए बनाई जाती है।

ऐपण मुख्य रूप से अंगुलियों की सहायता से बनाए जाते हैं, जिनमें चावल के पिसे घोल (विस्वार), गेरू (लाल मिट्टी), हल्दी और रोली का प्रयोग होता है। इसकी विशेषता है लाल पृष्ठभूमि पर सफेद रंग से बने ज्यामितीय आकृतियाँ, फूलपत्तियाँ और धार्मिक प्रतीक, जो शुभता, मंगलकामना और देवताओं के स्वागत का प्रतीक माने जाते हैं।

aipankari (5)

ऐपण कला का इतिहास और परंपरा aipan art

ऐपण कला aipan art का इतिहास पौराणिक काल से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि यह लोककला प्राचीन समय में देवी-देवताओं की पूजा साधना का एक माध्यम रही है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में सदियों से घर के मुख्य द्वार, मंदिरों की दीवारें, तुलसी चौरा, ओखली, और हवन कुंड को ऐपण डिज़ाइनों से सजाने की परंपरा रही है।

जहाँ पहले गेरू और विस्वार (चावल का घोल) का उपयोग होता था, वहीं आज की आधुनिक शैली में सफेद और लाल ऑइल पेंट या स्टिकर ऐपण का चलन बढ़ गया है। इसके बावजूद, मूल कला की आध्यात्मिक शक्ति और सांस्कृतिक गहराई आज भी उतनी ही प्रभावशाली है जितनी प्राचीन समय में थी।

यह कला कभी किसी औपचारिक संस्था या किताब से नहीं सीखी जाती थी, बल्कि मां अपनी बेटियों को यह कला घर पर ही सिखाती थी। खेल-खेल में और मदद के बहाने सीखने से यह परंपरा स्वाभाविक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रही

aipankari (6)

इस कुमाऊँनी कला को हाल ही में सितंबर 2021 में भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग मिला है। जीआई टैग ऐपण कला aipan art के निर्माण में शामिल पारंपरिक कारीगरों और समुदायों को मान्यता और आर्थिक लाभ प्रदान करेगा, साथ ही आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा भी देगा।

देहली ऐपण (Dehli Aipan)– घर की दहलीज़ पर शुभता का स्वागत kumaoni aipan design for door

देहली ऐपण( Dehli Aipan) , उत्तराखंड की कुमाऊंनी परंपरा का एक ऐसा सुंदर हिस्सा है जो घर के प्रवेशद्वार (देहरी) को न सिर्फ सजाता है बल्कि उसे शुभ और पवित्र भी बनाता है। इसे “देहली लिखना” या “धेई लिखना” भी कहा जाता है। यह परंपरा इतनी प्राचीन है कि इसके निशान हमें प्राचीन यक्ष संस्कृति में भी मिलते हैं।

महाकवि कालिदास ने भी अपनी प्रसिद्ध रचना मेघदूत में इसका जिक्र किया है, जहाँ हिमालय की अलकापुरी का एक यक्ष अपने घर का पता बताते हुए कहता है:

द्वारोपान्ते लिखितवपुषौ शंखपद्मौ दृष्टवा”
(मेरे घर की देहरी पर मेरी पत्नी द्वारा बनाए गए शंख और कमल के चित्र देखकर, तुम उसे पहचान सकोगे।)

aipankari

त्योहार और देहली ऐपण

कुमाऊं में कोई भी पर्व या धार्मिक अनुष्ठान ऐसा नहीं जिसमें देहली ऐपण न बनाया जाए। इतना ही नहीं, यहाँ देहली पूजन एक अलग त्योहार के रूप में पूरे महीने मनाया जाता है।

  • फूल संक्रांति से शुरू होकर
  • विषुवत संक्रांति (बिखौती) तक चलने वाली इस परंपरा में
    गृहणियां रोज़ अपनी देहरी को गोबर-मिट्टी और गेरू से लीपकर, चावल के पेस्ट (बिस्वार) से सुंदर आकृतियाँ बनाती हैं।

डिज़ाइन और महत्व Aipan Design

देहली ऐपण में पारंपरिक रूप से शंख, कमल, स्वास्तिक, अष्टदल, लक्ष्मी पद जैसे डिज़ाइन बनाए जाते हैं, जो घर में सुख-समृद्धि, सकारात्मक ऊर्जा और देवताओं का आशीर्वाद लाने के प्रतीक हैं।

ऐपण कला का महत्व (Significance of Aipan Art)

ऐपण कला (aipan art) केवल एक सजावटी चित्रकारी नहीं है, बल्कि यह आस्था, परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में यह माना जाता है कि ऐपण डिज़ाइन शुभ ऊर्जा को घर में आमंत्रित करते हैं और नकारात्मक शक्तियों को दूर रखते हैं। यही कारण है कि इसे विशेष रूप से शुभ अवसरों और धार्मिक अनुष्ठानों के समय बनाया जाता है।

  1. शुभता और मंगलकामना का प्रतीक
    ऐपण के डिज़ाइन देवी-देवताओं के स्वागत और पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा माने जाते हैं। लाल पृष्ठभूमि (गेरू) भूमि की पवित्रता और सफेद रंग (चावल का घोल) शुद्धता का प्रतीक है।
  2. आध्यात्मिक शक्ति
    पारंपरिक मान्यता के अनुसार, ऐपण कला के विशेष ज्यामितीय पैटर्न और धार्मिक प्रतीक ध्यान, साधना और ऊर्जा संतुलन में मदद करते हैं।
  3. सांस्कृतिक पहचान
    ऐपण कला उत्तराखंड की कुमाऊंनी संस्कृति की आत्मा है। यह लोककला न केवल घरों में बल्कि मेलों, मंदिरों और सांस्कृतिक आयोजनों में भी प्रमुख स्थान रखती है।
  4. पीढ़ियों को जोड़ने वाला माध्यम
    यह कला माँ से बेटी को सिखाए जाने के कारण परिवार और संस्कृति के बीच गहरा संबंध बनाए रखती है।
  5. आधुनिक समय में महत्व
    आज ऐपण डिज़ाइन सिर्फ पारंपरिक दीवारों या आँगन तक सीमित नहीं हैं, बल्कि होम डेकोर, कपड़ों, हैंडिक्राफ्ट और डिजिटल आर्ट में भी इस्तेमाल हो रहे हैं, जिससे यह कला न केवल जीवित है बल्कि वैश्विक पहचान भी बना रही है।

ऐपण कला के प्रकार (Types of Aipan Art)

ऐपण कला Aipan Design में अलग-अलग अवसरों, त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए विशेष डिज़ाइन बनाए जाते हैं। हर डिज़ाइन का अपना धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। नीचे ऐपण कला के कुछ प्रमुख प्रकार दिए गए हैं —


1. अष्टदल (Ashtadal)

  • अर्थ – अष्टदल का मतलब है “आठ पंखुड़ियों वाला कमल”।
  • महत्व – यह डिज़ाइन देवी-देवताओं के आसन के रूप में बनाया जाता है और पवित्रता, ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक है।
  • अवसर – देवी पूजन, गृह प्रवेश, विवाह।

2. दीप (Deep)

  • अर्थ – दीपक का प्रतीक, जो अंधकार को दूर करता है।
  • महत्व – यह डिज़ाइन सकारात्मक ऊर्जा और ज्ञान का प्रतीक है।
  • अवसर – दीपावली, पूजन, जनेऊ संस्कार।

3. धूलि अरघ्य (Dhuli Arghya)

  • अर्थ – विवाह के दौरान दूल्हा-दुल्हन द्वारा धरती और देवताओं को अर्पित की जाने वाली रचना।
  • महत्व – यह डिज़ाइन विवाह की पवित्रता और मंगलकामना का प्रतीक है।

4. चौकी (Chowki)

  • अर्थ – एक विशेष वर्गाकार डिज़ाइन, जिसके भीतर देवी-देवताओं का स्थान तय किया जाता है।
  • महत्व – देवी पूजन में चौकी पर मूर्ति या चित्र स्थापित कर पूजा की जाती है।
  • अवसर – नवदुर्गा पूजन, संक्रांति, त्यौहार।

5. सरस्वती चौकी (Saraswati Chowki)

  • अर्थ – ज्ञान और शिक्षा की देवी मां सरस्वती के पूजन के लिए बनाई जाने वाली विशेष चौकी।
  • महत्व – यह शिक्षा, कला और ज्ञान का आह्वान करती है।
  • अवसर – बसंत पंचमी, बच्चों का पहला अक्षर लिखने का संस्कार।

6. पंचांग (Panchang)

  • अर्थ – पांच मुख्य प्रतीकों से युक्त डिज़ाइन।
  • महत्व – यह जीवन के पांच तत्वों और संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है।

7. लक्ष्मी पद (Lakshmi Pad)

  • अर्थ – देवी लक्ष्मी के चरणों के निशान।
  • महत्व – घर में धन, सुख और समृद्धि लाने का प्रतीक।
  • अवसर – दीपावली, अष्टमी, धनतेरस।

8. करवा चौथ ऐपण (Karva Chauth Aipan)

  • अर्थ – करवा चौथ व्रत के लिए विशेष रूप से बनाई जाने वाली गोलाकार या चौकोर ऐपण रचना, जिसमें चंद्रमा, छलनी, दीया और करवा के प्रतीक शामिल होते हैं।
  • महत्व – यह डिज़ाइन पति की लंबी उम्र, वैवाहिक सुख और परिवार की समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु बनाया जाता है।
  • अवसर – करवा चौथ के दिन, व्रत पूजन और चंद्र दर्शन से पहले थाली या पूजा स्थल पर बनाया जाता है।

ऐपण का वस्त्रों पर प्रयोग
ऐपण कला (Aipan Art) केवल भूमि, दीवारों या पूजा स्थलों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रयोग वस्त्रों पर भी होता है।
कुमाऊं क्षेत्र में “पिछोड़ा” नामक पारंपरिक चुनरी पर ऐपण के पवित्र प्रतीक हाथ से बनाए जाते थे।
यह वस्त्र विशेष रूप से विवाह, नामकरण या अन्य शुभ अवसरों पर महिलाओं द्वारा पहना जाता है और इसे आशीर्वाद तथा मंगलकामना का प्रतीक माना जाता है।
हालाँकि, समय के साथ हाथ से बनाए पिछोड़े की जगह प्रिंटेड पिछोड़े ने ले ली है, जिससे पारंपरिक हस्तकला का चलन धीरे-धीरे कम हो रहा है।

aipankari (4)

आधुनिकता और ऐपण का व्यवसायीकरण
आज के व्यस्त जीवन में लोगों के पास समय और धैर्य की कमी है, जिसके कारण पारंपरिक हाथ से बनाए जाने वाले ऐपण की जगह अब रेडीमेड स्टिकर ऐपण, ऑइल पेंट डिज़ाइन, और डिजिटल प्रिंट पैटर्न का प्रचलन बढ़ गया है।
ये आधुनिक विकल्प देखने में आकर्षक और लगाने में आसान होते हैं, लेकिन इनमें वह आत्मिक ऊर्जा, ध्यान की शक्ति और सांस्कृतिक गहराई नहीं होती जो एक पारंपरिक ऐपण में होती है।
पारंपरिक ऐपण (aipan art) बनाने की प्रक्रिया सिर्फ कला नहीं, बल्कि एक ध्यान और आध्यात्मिक जुड़ाव का अनुभव भी होती है, जो मशीन या प्रिंट से संभव नहीं।

ऐपण कला के प्रचार-प्रसार में इन्फ्लुएंसर्स की भूमिका (aipan art)

सोशल मीडिया के दौर में, पारंपरिक कला को नए दर्शकों तक पहुँचाने में इन्फ्लुएंसर्स की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो गई है।
इंस्टाग्राम, यूट्यूब, और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर क्रिएटर्स और आर्टिस्ट ऐपण आर्ट (aipan art) के वीडियो, रील्स और ट्यूटोरियल साझा करके इस लोककला को फिर से लोकप्रिय बना रहे हैं।

  • लोकल आर्ट प्रमोशन – उत्तराखंड के स्थानीय इन्फ्लुएंसर अपने कंटेंट में ऐपण आर्ट को शामिल करके इसे युवाओं के बीच ट्रेंडी बना रहे हैं।
  • DIY & Workshop Content – कई इन्फ्लुएंसर्स लाइव सेशन और वर्कशॉप आयोजित करते हैं, जहाँ लोग ऐपण बनाना सीखते हैं।
  • ग्लोबल ऑडियंस – सोशल मीडिया के जरिए ऐपण केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी आर्ट और कल्चर लवर्स तक पहुँच रहा है।
  • ब्रांड कोलैबोरेशन – फैशन, होम डेकोर और हैंडीक्राफ्ट ब्रांड्स, इन्फ्लुएंसर्स के साथ मिलकर ऐपण डिज़ाइन वाले प्रोडक्ट्स को प्रमोट करते हैं, जिससे लोकल कलाकारों को आर्थिक लाभ मिलता है।

इन्फ्लुएंसर्स न सिर्फ इस कला को जीवित रख रहे हैं, बल्कि इसे आधुनिक अंदाज में प्रस्तुत करके नई पीढ़ी में इसके प्रति गर्व और रुचि भी जगा रहे हैं।

ऐपण और आध्यात्मउंगलियों से ईश्वर तक का सफर

ऐपण कला (aipan art) केवल सजावट नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक साधना है। इसे बनाने की प्रक्रिया, इसके डिज़ाइन और इसके रंग – सभी का संबंध मन, आत्मा और ईश्वरीय ऊर्जा से जुड़ा हुआ है।

aipankari (3)

1. ऊर्जा का आह्वान

जब गेरू से भूमि को लीपा जाता है और बिस्वार (चावल का घोल) से डिज़ाइन बनाए जाते हैं, तो यह स्थान को पवित्र और ऊर्जावान बनाता है। पारंपरिक मान्यता है कि गेरू धरती तत्व का प्रतीक है और चावल शुद्धता तथा सकारात्मक ऊर्जा का।

2. मन का ध्यान और शांति

ऐपण (aipan art) बनाते समय कलाकार का पूरा ध्यान हर रेखा, हर आकृति और हर बिंदु पर होता है। यह मेडिटेशन की तरह है – जिसमें मन वर्तमान क्षण में रहता है और नकारात्मक विचार दूर हो जाते हैं।

3. प्रतीकों का आध्यात्मिक अर्थ

  • अष्टदल कमल – आत्मज्ञान और पवित्रता का प्रतीक।
  • स्वास्तिक – चारों दिशाओं और सृष्टि के चक्र का प्रतिनिधि।
  • लक्ष्मी पद – सुख, संपन्नता और आध्यात्मिक समृद्धि का आह्वान।
  • दीप डिज़ाइन – अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाना।

4. अनुष्ठानों में भूमिका

ऐपण को पूजा, विवाह, जनेऊ, नवदुर्गा, करवाचौथ, संक्रांति जैसे अवसरों पर बनाया जाता है। यह न केवल देवताओं को आमंत्रित करता है बल्कि वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।

5. आधुनिक युग में आध्यात्मिकता का विस्तार

आज के समय में इंस्टाग्राम, यूट्यूब और ऑनलाइन वर्कशॉप्स के माध्यम से ऐपण कला (aipan art) अब सिर्फ गाँवों या घरों तक सीमित नहीं रही, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना रही है।
बहुत से लोग इसे थेरैपी की तरह अपनाकर तनाव कम करने और आत्म-शांति पाने का माध्यम मानते हैं।

जब कोई कलाकार ऐपण रचता है, तो उसका मन सिर्फ डिज़ाइन पर नहीं, बल्कि ईश्वर के स्वरूप पर केंद्रित होता है।
यही कारण है कि पारंपरिक ऐपण में एक जीवंत ऊर्जा और आत्मिक स्पंदन होता है, जो मशीन से बने स्टिकर ऐपण में कभी महसूस नहीं किया जा सकता।

ऐपण और रोज़गार (Aipan and Employment)

ऐपण कला (aipan art) सिर्फ संस्कृति और परंपरा का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह रोज़गार और आत्मनिर्भरता का एक मज़बूत साधन भी बन चुकी है। पहले यह सिर्फ त्योहारों और अनुष्ठानों तक सीमित थी, लेकिन आज क्रिएटिव इंडस्ट्री, ई-कॉमर्स और टूरिज्म के जरिए यह युवाओं और महिलाओं के लिए कमाई का एक नया रास्ता खोल रही है।


1. महिला सशक्तिकरण का माध्यम

  • उत्तराखंड के कई महिला स्वयं सहायता समूह (SHG) ऐपण बनाकर घर बैठे आय कमा रहे हैं।
  • महिलाएं कपड़े, होम डेकोर आइटम, और गिफ्ट हैंपर पर ऐपण डिज़ाइन बनाकर लोकल मेलों और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर बेच रही हैं।
  • Pahadi Women Entrepreneurs जैसे अभियान से ऐपण को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंच मिल रही है।

2. कॉमर्स और ऑनलाइन बिज़नेस

  • ऐपण डिज़ाइन aipan design वाले प्रोडक्ट्स Amazon, Meesho और Instagram Shops पर बिक रहे हैं।
  • लोग ऐपण डिज़ाइन aipan design के Digital Prints बेचकर भी कमाई कर रहे हैं, जिन्हें ग्राहक वॉल आर्ट, टी-शर्ट, पोस्टर या ग्रीटिंग कार्ड में इस्तेमाल करते हैं।

3. टूरिज्म और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से आय

  • उत्तराखंड आने वाले पर्यटक Aipan Workshops में हिस्सा लेकर इसे सीखते हैं, जिससे स्थानीय कलाकारों को आय मिलती है।
  • हैंडिक्राफ्ट मेलों में ऐपण की लाइव डेमो और तैयार उत्पादों की बिक्री होती है।

4. ऐपण आधारित प्रोडक्ट्स के बिज़नेस आइडिया aipan design

  • फैशन और टेक्सटाइल: साड़ी, कुर्ता, दुपट्टा, स्कार्फ
  • होम डेकोर: कुशन कवर, टेबल रनर, वॉल हैंगिंग
  • गिफ्ट आइटम्स: डायरियां, कैलेंडर, की-चेन, मग
  • आर्ट इंस्टॉलेशन: कैफ़े, होटल और मंदिर की सजावट

5. ग्लोबल मार्केट में कमाई

  • विदेशों में हैंडमेड और इकोफ्रेंडली आर्ट की बहुत मांग है, जिससे ऐपण प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट किया जा रहा है।
  • ऐपण पैटर्न को NFTs और डिजिटल आर्ट के रूप में बेचकर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमाई हो रही है।

निष्कर्ष

ऐपण कला aipan art सिर्फ एक पारंपरिक चित्रकारी नहीं, बल्कि संस्कृति, आस्था और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।
आज के समय में यह कला न केवल घरों और मंदिरों की देहरी तक सीमित है, बल्कि फैशन, होम डेकोर और इंटरनेशनल मार्केट तक अपनी पहचान बना रही है।

Aipankari इसी सोच के साथ काम करता है — पारंपरिक ऐपण कला (aipan art) को आधुनिक डिज़ाइन, प्रोडक्ट्स और प्लेटफ़ॉर्म के जरिए दुनिया तक पहुँचाने के लिए। हमारा उद्देश्य है कि यह कला न केवल एक सजावट का माध्यम बने, बल्कि कलाकारों के लिए रोज़गार और पहचान का स्रोत भी बने।

अगर सही योजना, आधुनिक मार्केटिंग और गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए, तो ऐपण कला से सालाना लाखों रुपये की आय संभव है।
Aipankari इसी दिशा में कदम बढ़ा रहा है, ताकि हमारी पहाड़ी विरासत आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रहे और वैश्विक मंच पर अपनी जगह बनाए।

Aipankari – परंपरा भी, पहचान भी।

यह लेख पढ़ें – भारत की लोक कला

Leave a Reply

Shopping cart

0
image/svg+xml

No products in the cart.

Continue Shopping