अल्मोड़ा, उत्तराखंड की रहने वाली कविता पांडे Kavita Pandey पिछले 8 वर्षों से ऐपण कला में सक्रिय हैं। उनके इस सफर को हम Aipankari पर पेश कर रहे हैं, जहाँ हम उत्तराखंड की पारंपरिक कला और कलाकारों की कहानियाँ साझा करते हैं। उन्होंने यह कला बचपन में अपनी माँ और दादी से सीखी और धीरे-धीरे इसे अपने जीवन का अहम हिस्सा बना लिया। इन वर्षों में कविता ने न केवल अपने घर और गाँव को सुंदर ऐपण से सजाया, बल्कि इस कला को आगे बढ़ाने और नई पीढ़ी तक पहुँचाने का काम भी किया है।
Kavita Pandey शुरुआत की कहानी
कविता पांडे बताती हैं कि उन्होंने ऐपण कला अपने दादी से सीखी। बचपन में जब घर के आँगन में पूजा होती थी, तो दादी मिट्टी के फर्श पर लाल गेरू और चावल के घोल से आकृतियाँ बनाती थीं। उन्हीं रेखाओं को देख–देखकर अंजलि का मन इस कला में रम गया।
“शुरुआत में बस नकल करती थी, पर धीरे–धीरे समझ आया कि हर रेखा में एक आशीर्वाद छिपा है,” कविता मुस्कुराते हुए कहती हैं।
ऐपण का मतलब उनके लिए
उनके लिए ऐपण केवल एक कला नहीं, बल्कि श्रद्धा का माध्यम है “जब मैं ऐपण बनाती हूँ, तो लगता है जैसे मैं भगवान से सीधी बात कर रही हूँ। ये मेरे लिए मेडिटेशन जैसा है,” कविता कहती हैं।
उनके अनुसार, ऐपण ने उन्हें अपनी जड़ों से जोड़े रखा है, चाहे वो शहर में कहीं भी क्यों न हों।
चुनौतियाँ और बदलाव
शुरुआत में सबसे बड़ी चुनौती थी — सामग्री और रंगों की उपलब्धता। “पहले सब कुछ प्राकृतिक होता था, अब हमें बाज़ार से लाना पड़ता है। लेकिन कोशिश रहती है कि कला की आत्मा वही रहे,” वो बताती हैं। उन्होंने ऐपण को केवल फर्श तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे कैनवास, कपड़े और दीवारों पर भी उतारा।
नई पीढ़ी और ऐपण
वो मानती हैं कि अब युवाओं में ऐपण के प्रति रुचि बढ़ी है, खासकर सोशल मीडिया के ज़रिए।
“पहले लोग कहते थे ये पुरानी चीज़ है, पर अब वही लोग मुझसे सीखने आते हैं,” कविता हँसते हुए बताती हैं।
उपलब्धियाँ और योगदान Achievements
कविता ने कई स्थानीय मेलों में हिस्सा लिया है और दो बार जिला स्तर पर सम्मानित हुई हैं। साथ ही वो अब अपने गाँव की महिलाओं को ऐपण सिखा रही हैं ताकि वो भी इस कला से आत्मनिर्भर बन सकें।
सपना Vision / Dream
उनका (Kavita Pandey ) सपना है कि Aipan art को global platform पर पहचान मिले।
“मैं चाहती हूँ कि दुनिया जाने कि हमारे उत्तराखंड की ये रेखाएँ केवल सजावट नहीं, बल्कि संस्कृति की आत्मा हैं।”
ऐपण कला पर उनके विचार
Q1. सबसे पहले हमें बताइए कि आपने ऐपण कला सीखना और करना कब और कैसे शुरू किया?
मैंने ऐपण कला लगभग दस साल पहले शुरू की थी। बचपन में मेरी माँ और दादी त्योहारों के समय घर की चौखट और आँगन में लाल मिट्टी और चावल के घोल से डिजाइन बनाती थीं। मैं हमेशा उनके पास बैठकर देखती रहती थी। धीरे-धीरे मेरी रुचि बढ़ी और मैंने खुद कोशिश करना शुरू किया। पहले केवल घर के लिए बनाया, फिर दोस्त और पड़ोसियों के लिए। यह मेरे लिए केवल कला की शुरुआत नहीं, बल्कि अपनी परंपरा को आगे बढ़ाने का पहला कदम था।
Q2. आपके लिए ऐपण कला का व्यक्तिगत महत्व क्या है?
ऐपण मेरे लिए सिर्फ सजावट नहीं है। यह मेरे जीवन का हिस्सा बन गई है। जब मैं इसे बनाती हूँ तो मन को शांति मिलती है और ऐसा लगता है जैसे हर रेखा में कुछ आशीर्वाद छिपा है। यह मेरी पहचान, आस्था और संस्कृति का प्रतीक है। इससे मुझे लगता है कि मैं अपनी जड़ों से जुड़ी हूँ और अपने परिवार तथा समाज के लिए कुछ सकारात्मक योगदान दे रही हूँ।
Q3. जब आपने शुरुआत की थी तब सबसे बड़ी चुनौती क्या रही?
शुरुआत में सबसे बड़ी चुनौती थी लोगों को यह समझाना कि ऐपण केवल पुरानी परंपरा नहीं है बल्कि आधुनिक समय में भी इसकी जगह है। इसके अलावा सामग्री जुटाना और समय निकालना भी मुश्किल था। कभी-कभी लोग इसे गंभीर पेशे के रूप में नहीं देखते थे। मुझे अपनी कला दिखाने और exhibitions में भाग लेने के लिए खुद प्रेरित रहना पड़ा। धीरे-धीरे मेहनत और धैर्य के साथ लोग इसे सराहने लगे।
Q4. आपके काम में कौन-सा डिज़ाइन या प्रतीक सबसे खास है और क्यों?
मुझे कमल और सूर्य के डिज़ाइन सबसे ज्यादा पसंद हैं। कमल पवित्रता का प्रतीक है और सूर्य ऊर्जा का। जब मैं इन दोनों को एक साथ बनाती हूँ, तो ऐसा लगता है कि हर रेखा में जीवन की शक्ति और सुंदरता समाहित है। इसके अलावा, स्वास्तिक और चौखट के डिज़ाइन भी मेरे काम में अक्सर आते हैं, क्योंकि ये शुभता और समृद्धि का प्रतीक होते हैं।
Q5. आज की नई पीढ़ी ऐपण को कितना अपनाना चाहती है? क्या उनमें रुचि बढ़ रही है?
पहले युवा वर्ग ऐपण में कम रुचि दिखाते थे। लेकिन अब सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म की वजह से उनमें काफी उत्साह देखने को मिलता है। कई युवा लड़कियाँ और लड़के workshops में आ रहे हैं और खुद भी ऐपण बना रहे हैं। कुछ ने तो इस कला को अपने fashion और art projects में integrate करना शुरू कर दिया है। यह देखकर मुझे बहुत खुशी होती है कि ऐपण केवल पुरानी चीज़ नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ी में भी जिंदा है।
Q6. क्या आपने कभी ऐपण कला को आधुनिक स्टाइल या नए माध्यमों में प्रस्तुत किया है?
हाँ, मैंने ऐपण को सिर्फ दीवारों तक सीमित नहीं रखा। मैंने इसे कैनवास, कपड़े, लकड़ी और digital platforms पर भी प्रस्तुत किया है। टी-शर्ट, बैग, नोटबुक और मोबाइल कवर जैसे माध्यमों में ऐपण डिज़ाइन दिखाना मेरे लिए बहुत rewarding रहा। मुझे लगता है कि परंपरा को जीवित रखने के लिए उसे नए रूप में पेश करना बहुत जरूरी है।
Q7. आपके अब तक के सफ़र में कोई ऐसी खास उपलब्धि या पल रहा है जिसे आप यादगार मानते हैं?
मेरे लिए सबसे यादगार पल था जब मैंने पहली बार अपने गाँव की महिलाओं को ऐपण सिखाया और उन्होंने खुद अपने काम को बेचने शुरू किया। उनके चेहरे की खुशी और आत्मविश्वास देखकर मुझे महसूस हुआ कि मेरी कला केवल खुद तक सीमित नहीं, बल्कि दूसरों के जीवन में भी बदलाव ला सकती है। इसके अलावा, मेरे कई local exhibitions और online recognition ने मेरे सफर को खास बना दिया।
Q8. आपको लगता है कि सरकार या समाज से इस कला को आगे बढ़ाने के लिए और किस तरह की मदद मिलनी चाहिए?
सरकार और समाज से मदद मिलना बहुत जरूरी है। मुझे लगता है कि local workshops, art centers और exhibitions की सुविधा बढ़ानी चाहिए। साथ ही online marketing और training के लिए support देना चाहिए ताकि कलाकार अपनी कला को global audience तक पहुँचा सकें। इससे न केवल कला बचेगी बल्कि महिलाएँ और युवा आर्थिक रूप से भी सक्षम बनेंगे।
Q9. आप उन लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगे जो इस कला को सीखना या अपनाना चाहते हैं?
मैं यही कहना चाहूँगी कि धैर्य और लगन के साथ सीखें। ऐपण केवल रेखाएँ नहीं है, यह भावनाओं, श्रद्धा और साधना का माध्यम है। शुरुआत में perfection की चिंता मत करें, बस मन से बनाइए। जितना अधिक practice करेंगे, उतना ही आत्मविश्वास और skill बढ़ेगा।
Q10. आपके आने वाले सपने या योजनाएँ क्या हैं इस कला को लेकर?
मेरा सपना है कि ऐपण कला को global platform पर पहचान मिले। मैं चाहती हूँ कि मेरी कला दुनिया के और लोगों तक पहुँचे और साथ ही अपने गाँव की महिलाओं और युवाओं को सिखाकर उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाया जाए। भविष्य में मैं एक छोटा “Aipan Learning Center” खोलने की सोच रही हूँ, जहाँ हर कोई इस कला को सीख सके और इसे अपने जीवन का हिस्सा बना सके।
Q11. आप Aipankari जैसी डिजिटल पहल को अपनी कला और परंपरा को साझा करने के लिए कैसे देखती हैं?
मुझे लगता है कि Aipankari जैसी डिजिटल पहल पारंपरिक कला को नई पीढ़ी और दुनिया भर तक पहुँचाने का बेहतरीन माध्यम है। इसके जरिए मैं अपनी ऐपण कला को सिर्फ अपने गाँव तक सीमित नहीं रखती, बल्कि workshops, ऑनलाइन tutorials और सोशल मीडिया के ज़रिए इसे और लोगों तक पहुँचा सकती हूँ। इससे न केवल कला जीवित रहती है, बल्कि युवा कलाकार भी प्रेरित होते हैं और सीखने के अवसर पाते हैं।
उनकी ऐपण रचनाएँ और डिजाइन
कविता पांडे की ऐपण रचनाएँ पारंपरिक संस्कृति और उनकी रचनात्मक दृष्टि का सुंदर मिश्रण हैं। उनके डिज़ाइन में कमल, सूर्य और स्वास्तिक जैसे प्रतीक शामिल हैं। उन्होंने ऐपण को फर्श के साथ-साथ कैनवास, कपड़े और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर भी प्रस्तुत किया, जिससे उनकी कला सजावट के साथ-साथ एक कहानी और भावना भी व्यक्त करती है।

निष्कर्ष
कविता पांडे की कहानी हमें याद दिलाती है कि ऐपण केवल कला नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, आस्था और पहचान का प्रतीक है। उनकी मेहनत और समर्पण ने यह साबित किया कि परंपरा को जीवित रखना सिर्फ यादों में नहीं, बल्कि इसे आज की नई पीढ़ी और आधुनिक माध्यमों तक पहुँचाने में है। हर रेखा और रंग में छिपा उनका भाव हमें प्रेरित करता है कि हमारी जड़ों और संस्कारों को संभालना ही असली कला है। ऐसे कलाकार न केवल हमारी परंपरा की रक्षा करते हैं, बल्कि इसे आने वाले समय के लिए भी संजो कर रखते हैं।
हम Aipankari पर ऐसी कलाकारों की कहानियाँ और उनके अद्भुत काम को साझा करते रहते हैं, ताकि आप भी उत्तराखंड की पारंपरिक कला और कलाकारों से जुड़ सकें और इस विरासत को आगे बढ़ाने में हिस्सा ले सकें।